Internet


इन्टरनेट का परिचय
Introduction of Internet 

Internet एक विश्वव्यापी Computer Network पर संग्रहीत सूचना वितरित करने तथा विभिन्न Computer user के मध्य सहयोग व संपर्क का माध्यम है, जिसके द्वारा बिना किसी धर्म द्वेष या भेदभाव के सूचनाओं का आदान-प्रदान करना संभव है 

Internet की विभिन्न लोगों ने निम्न परिभाषाएँ दी हैं- 

(i) कुछ इसे फाइबर ऑप्टिक्स टेलीफोन लाइन या उपग्रह माध्यम से जुड़े Computer का समूह कहते है। 

(ii) कुछ इसे Computer user द्वारा विश्व में संदेश व सूचना के आदान-प्रदान का साधन कहते हैं। 

(iii) कुछ इसे भविष्य की तकनीक कहते हैं, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव होगी। 

Intenet का इतिहास 38 साल पुराना है । इंटरनेट का पितामह केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रो. लिपोनार्ड क्लीनरॉक को कहा जाता है। प्रो. लिपोनार्ड और उनके साथियों ने 2 सितम्बर, 1969 को दो Computers के माध्यम से संवाद कायम करने में सफलता पाई थी। यह संवाद रेफ्रिजरटर के आकार के एक रूटर (Router) के जरिए बना था, जिसे इंटरफेस मैसेज प्रोसेसर कहा गया। वास्तव में दो Computers के जरिये आपस में 20 अक्टूबर, 1969 को बात की गई। अमेरिका की ARPA एजेन्सी ने इसके लिए धन दिया था।

इंटरनेट का इतिहास
History of Internet

इंटरनेट एक बहुत तीव्र गति से बढ़ता हुआ नेटवर्क है। इसकी शुरूआत 1960 के दशक में अमेरिका के रक्षा विभाग में अन्वेषण के कार्यों के लिए हुई थी। प्रारंभ में इसे "ARPANET' नाम दिया गया। 1971 में कम्प्यूटर के तीव्र विकास और अधिकता के कारण ARPANET अथवा इंटरनेट लगभग 10,000 कम्प्यूटर्स का नेटवर्क बना। आगे चलकर 1987 से 1989 तक इसमें लगभग 100,000 कम्प्यूटर्स शामिल हुए। 1990 में ARPANET के स्थान पर इंटरनेट का विकास जारी रहा जो 1992 में 10 लाख कम्प्यूटर्स, 1993 में 20 लाख कम्प्यूटर्स और बाद में क्रमश: बढ़ता रहा। इंटरनेट वास्तव में पब्लिक के लिये कम्युनिकेशन व इन्फॉर्मंशन एक्सेस करने का सबसे तीव्र व सस्ता माध्यम है ।

इंटरनेट के विकास में बहुत लोगों का योगदान रहा है। इसके प्रारंभिक विकास की अवस्था 1950 के दशक की कही जा सकती है।US गवमेंट ने USSR (सोवियत संघ) से स्पेस सुप्रीमेसी ( सर्वोच्चता) पुन: प्राप्त करने के लिये (जो कि USSR के 1957 में स्पूतनिक के लांच करने से US के हाथ से चली गई थी), ARPA ( एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट ऐजेन्सी) बनायी, जिसमें J.C.R. Licklider कम्यूटर विभाग के प्रमुख थे।

ARPANET की कहानी (Story of ARPANET)- ARPANET [ एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट ऐजेन्सी ( ARPA) नेटवर्क ] ऐसा नेटवर्क था, जो कि ARPA ने 1969 में विकसित किया था। इसकी स्थापना डिपार्टमेंट ऑफ डिफेन्स ने की थी। यह नेटवर्क मुख्य रूप से प्रायोगिक था। यह नेटवर्किग टेक्नोलॉजी के विकास व टेस्ट के लिये तथा अन्वेषण के लिये बनाया गया था। प्रारंभिक नेटवर्क संपूर्ण अमेरिका की चार प्रमुख यूनिवर्सिंटी के चार होस्ट कम्यूटर को आपस में जोड़कर बनाया गया था। इसके द्वारा यूजर्स सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। 1972 तक ARPANET से लगभग 32 होस्ट कम्प्यूटर जुड़ चुके थे व इसी वर्ष ARPA का नाम DARPA (डिफेन्स एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट ऐजेन्सी) में परिवर्तित हुआ। 1973 में ARPANET ने अमेरिका की सीमाओं को पार करते हुए प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कनेक्शन्स् इंग्लैण्ड व नावें से किये।

ARPANET का एक मुख्य उद्देश्य था कि नेटवर्क का कोई भाग यदि कार्य करना बंद कर दे तब भी नेटवर्क चालू रहे। इस क्षेत्र में जो प्रगति हुई वह नेटवकिंग रूल्स या प्रोटोकॉल्स, जिसे TCPI/IP ( ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल / इंटरनेट प्रोटोकॉल) के नाम से संबोधित किया गया।

TCP/IP, प्रोटोकॉल्स का एक समूह होता है जो यह निर्धारित करता है कि नेटवर्क में डेटा किस तरह से ट्रांसफर होगा। साथ ही यह अलग-अलग तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम्स् (जैसे DOS व UNIX) नेटवर्क के द्वारा डेटा शेयर करने की सुविधा देता है ।

ARPANET एक "' बेकबोन'"’ नेटवर्क के रूप में कार्य करता है। यह छोटे-छोटे  लोकल नेटवर्कं को आपस में कनेक्ट करता है, तथा जब एक बार ये छोटे-छोटे नेटवर्क बेकबोन से जुड़ जाते हैं तब ये आपस में भी आदान-प्रदान कर सकते हैं।

1983 में DARPA ने यह तय किया कि ARPANET से जुड़ने वाले कम्यूटर्स् के लिये TCP/IP एक स्टेंडर्ड प्रोटोकॉल सेट होगा 1 इससे तात्पर्य यह है कि कोई भी छोटा नेटवर्क (उदाहरण के लिये कोई भी यूनिवर्सिटी नेटवर्क) यदि ARPANET से जुड़ना चाहता है, तो डसे TCP/IP का उपयोग अनिवार्य व मुफ्त में उपलब्ध था और लगभग सभी नेटवर्कं इसका उपयोग करते थे। TCP/IP प्रोटोकॉल्स के विस्तार के कारण आज के इंटरनेट का स्वरूप सामने आया जिसे हम नेटवर्क ऑफ नेटवर्क्स कहते हैं ।इसमें या तो TCP/IP का उपयोग होता है या फिर वह TCP/IP नेटवर्क से interact कर सकता है।

(i) 1970 के दशक के विकास - 1970 के दशक में मुख्य नेटवर्किंग टूल्स विकसित किये गये। जो इस प्रकार हैं

(a) सन् 1972 में NCSA ( नेशनल सेन्टर फॉर सुपर कम्प्यूटिंग एप्लीकेशन्स्) ने रिमोट लॉगिन ( जिससे किसी दूर के computer को आसानी से जोड़ा जा सके ) के लिये TELNET एप्लीकेशन बनाया।

 (b) सन् 1973 में नेटवर्क कम्यूटर्स के बीच में फाइल्स के ट्रांसफर के लिये एस्टैंडर्ड FTP (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल बनाया। 

 (ii) 1980 के दशक के विकास - सन् 1983 में कुछ मुख्य घटनाएँ हुईं, जो इस प्रकार हैं

(a) TCP/IP प्रोटोकॉल सूट ARPANET के लिये एक स्टेंडर्ड प्रोटोकॉल सूट बना व इंटरनेट का प्रादुभाव हुआ ।ARPANET दो भागों में विभाजित हुआ, जिनके नाम थे MILNET (मिलेट्री साइट के लिये) व ARPANET (नॉनमिलेट्री साईट के लिये). जिससे मिलेट्री व सामान्य नेटवर्क में अंतर किया जा सके।

(b) 1986 में NSF (National science foundation) ने देश के छ: super computing सेंटर को आपस में जोड़ा व इस नेटवर्क को NSFNET या NSFNET बेकबोन नाम दिया गया।

(c) 1989 में NSFNET बेकबोन नेटवर्क को "T1" में परिवर्तित किया गया जिसका तात्पर्य था कि एक सेकण्ड में 1.5 मिलियन बिट्स डेटा या 50 टैक्स्ट पेज को ट्रांसमिट करने की क्षमता 

(iii) 1990 के दशक के विकास - सन् 1990 के दशक में सबसे महत्वपूर्ण विकास हुए, जो इस प्रकार हैं - 

(a) सन् 1990 में ARPANET को भंग कर दिया गया ।

(b) सन् 1990 में मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में गोफर को विकसित किया गया। गोफर, इंटरनेट पर सूचनाएँ देने व ढूंढने  की एक हिरैरकिकल मेन्यू पर आधारित विधि थी। इस टूल ने इंटरनेट को अधिक आसान बनाया ।

(c) सन् 1993 में CERN (यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च) स्विजरलैण्ड ( जिनेवा) के वैज्ञानिक टिम-बरनर-ली ने WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) को विकसित किया। WWW, इंटरनेट पर सूचनाओं को व्यवस्थित करने, प्रदर्शित करने व एक्सेस के लिये HTTP ( हायपर टैक्स्ट  ट्रांसफर  प्रोटोकॉल) व हायपरलिंक का उपयोग करता है।

(d) सन् 1993 में NSFNET बेकबोन पुन; "T3" में परिवर्तित हुई, जिससे तात्पर्य एक सेकण्ड में या तो 45 मिलियन बिट्स या फिर 1400 टैक्स्ट वाले पेजेस् को ट्रांसमिट करने की क्षमता से है

(e) सन् 1993-94 में मोजेक व नेटस्केप नेवीगेटर जैसे ग्राफिकल वेब ब्राउजर मार्केट में आये और इंटरनेट कम्युनिटी में इनका चलन बड़ा । इन ब्राउजर्स की ग्राफिय क्षमता व आसान स्वभाव के कारण WWW व इंटरनेट आम आदमी तक और आसानी से पहुँच सका।

(f) सन् 1995 में NSFNET बेकबोन को एक नये नेटवर्क आर्किटेक्चर के द्वारा परिवर्तित कर दिया गया।इस आर्किटेक्वर का नाम VBNS (वेरी हाईस्पीड बेकबोन नेटवर्क सिस्टम) है। यह NSPS ( नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स) रिजनल नेटवर्क्स व NAPs (नेटवर्क एक्सेस पॉइंट) का उपयोग करता है ।  


इंटरनेट की वृद्धि
Growth of Internet

1980 से लेकर 2000 तक के मध्य के दशकों के बीच Internet का उपयोग करने वालों की संख्या में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। जहाँ 1983 में 652 लोग इन्टरनेट का उपयोग करते थे । वहीं 2000 तक आते-आते यह संख्या 43 लाख हो गईं। वर्तमान में Internet  का उपयोग करने वालों की संख्या करोड़ से ऊपर तक पहुँच चुकी है। 
इंटरनेट की वृद्धि को निम्नांकित तालिका में स्पष्ट किया गया है -  


आज वर्तमान में lntenet Users की संख्या 5.4 billion को पार कर चुकी है जो कि विश्व की कुल आबादी का 67.1% है 

इंटरनेट के विभिन्न तत्व
Components of Internet 

इंटरनेट के निम्नलिखित तत्त्व हैं -

(i) Client PCs - ये Computers होते हैं जिनके माध्यम से User Servers पर Request भेजते हैं तथा Servers इन Requests को Response करते हैं।

(ii) Server Computers - दूसरे कम्प्यूटरों की अपेक्षाकत ये कम्यूटर काफी पॉवरफुल होते हैं तथा Multiple Clients को एक साथ विभिन्न प्रकार का डाटा उपलब्ध कराते हैं।

(iii) Networks - यह दो या दो से अधिक सर्वर कम्प्यूटरों से तथा Multiple Client PCs से मिलकर बना होता है

(iv) Nodes - Node एक सामान्य टर्म है जो एक Client, Server या Network को निरूपित करती है। 

इंटरनेट के विभिन्न गुण
Features of the Internet

इंटरनेट के गुण निम्नलिखित है -
 
(i) इंटरनेट के लिए कोई भी केंद्रीय नियंत्रण संस्था नहीं है । 

(ii) यह बढ़ती हुई यूजर्स की सुख्या व बढ़ते हुए ट्रेफिक की मात्रा को नियंत्रित करने में पूरी तरह से सक्षम है। इस गुण को टेक्नोलॉजी की स्केलेबिलिटी कहते हैं। 

(iii) यह यूजर के गुण-धर्मं निधांरित नहीं करता है । अतः यूजर एक मशीन, एक व्यक्ति अथवा कोई व्यापारिक एन्टिटी कुछ भी हो सकता है ।  

(iv) ऐसे बेकबोन नेटवर्क्स जिनसे मिलकर इंटरनेट बनता है, वह प्रायवेट कंपनीज के स्वामित्व व नियंत्रण में होते हँं। इनमें मुख्य रूप से MCI Worldcom और Sprint शामिल है।

(v) प्रायवेट कंपनीज अक्सर भौतिक लाइनों को शेयर करती हैं, और वे अक्सर क्षेत्रीय टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों (जैसे RBOCS) से लाइन लीज (किराये) पर लेती हैं । 

(vi) इंटरनेट पर बेकबोन लाइनें जिस बिन्दु पर लिक्ड होती हैं, उसे NAPs (नेटवर्क एक्सेस पॉइंट्स) कहते हैं, जहाँ पर ISPs (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर) ट्रेफिक एक्सचेंज करते हैं।

(vii) इंटरनेट के लिए TCP/IP एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल समूह है । 

इंटरनेट के लाभ
Benefits of Internet


 इंटरनेट के लाभ निम्नलिखित है -

(i) यह संपूर्ण विश्व को जोड़ने का एकमात्र तरीका है।
 
(ii) यह कम्युनिकेशन का सबसे सस्ता तरीका है।

(iii) यह कम्युनिकेशन का सबसे तीव्र तरीका है ।

(iv) यह जनसाधारण द्वारा नियंत्रित है अर्थात् सर्वसामान्य स्टैंडर्ड का ही पालन किया जाता है, क्योंकि किसी का स्वामित्व नहीं है।
 
(v) यहशिक्षा और व्यापार का सर्वोत्तम माध्यम है ।

(vi) इंटरनेट के साथ कार्य करने के लिए बहुत अधिक ज्ञान व तकनीक की जानकारी आवश्यक नहीं है।

इंटरनेट की हानियाँ
Disadvantage of Internet


 इंटरनेट की हानियाँ निम्नलिखित है -

(i) अपर्याप्त सुरक्षा अर्थात् हेकर्स व क्रेकर्स का अत्यधिक खतरा रहता है।

(ii) इस पर बहुमूल्य सूचना की अपेक्षा व्यर्थ सामग्री बहुत अधिक है।

(iii) कभी-कभी आर्गेनाइजेशन की प्रोडक्टविटी कम होने लगती है, क्योंकि कर्मचारी अधिकांशत: नेटसर्फिंग व्यापारिक कार्यों के लिए न करते हुए सिर्फ मनोरंजन के लिए ही करते हैं।

(iv) समय का नुकसान होता है, क्योंकि सूचनाओं को दूंढने व पुनः प्राप्त करने में बहुत अधिक समय लगता है।

(vi) इंटरनेट का व्यसन समाज व स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदायक है।  


इंटरनेट की विभिन्न उपयोगिता
Applications of Internet


Internet विश्व का सबसे विशाल, सम्पूर्ण एवं जटिल नेटवर्क होते हुए थी किसी भी क्षेत्र के अध्ययन, मनोरंजन, व्यापार आदि के लिए सर्वाधिक उपयोगी है। इसकी सेवाओं का पूर्ण एवं समुचित उपयोग करने के लिए इंटरनेट पर बहुत से विविध प्रकार के प्रोग्राम्स को स्थापित किया गया है । इन प्रोग्राम्स के प्रयोग से इन सेवाओं का उपयोग करने, उन्हें जोड़़ने तथा उनका प्रयोग सरल बनाने के लिए किया जा सकता  है।

इंटरनेट का प्रयोग जहाँ विभिन्न कम्पनीज विज्ञान, विपणन, क्रय, उत्पाद का वितरण तथा विक्रय उपरांत सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए करती हैं वहीं एक व्यक्ति अपने ज्ञान की वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं का क्रय आदि इंटरनेट की सहायता से कर सकता है।

इंटरनेट के विभिन्न एप्लीकेशन निम्नलिखित हैं -

(i) वर्ल्ड वाइड वेव (World Wide Web) -

वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web) का संक्षिप्त नाम WWW है वह एक एसा सार्वभौमिक (Global) दिखाई न देने वाला वातावरण है, जिसकी समस्त सूचनाएं ; जैसे - टैक्स्ट, चित्र, ऑडियो एवं वीडियो आदि इंटरनेट से ही Access की जा सकती हैं इन सूचनाओं को उचित प्रकार से प्राप्त करने के लिए इंटरनेट के मानक नियमों का पालन करना होता हैं। Web को Internet का पर्याय माना जाता है । सन् 1992 में जब वेब का पदार्पण हुआ तो इंटरनेट को एक ऐसा विस्तृत मंच माना जाने लगा जिस पर कम्पनियाँ अपने उत्पादों का प्रदर्शन कर सकती थीं । इंटरनेट से जुुड़े किसी भी कम्प्यूटर द्वारा वेब पेज का प्रकाशन किया जा सकता हैं, और तब वह वेब सर्वर सिस्टम माना जाता है। ऐसा स्थान जहाँ कोई व्यक्ति अथवा कंपनी को अपना परिचय या सम्बन्धित सूचना प्रकाशित करने को स्वतंत्रता हो "वेबसाइट" कहलाता है । एक वेबसाइट में एक-दूसरे से जुडे हुए अनेक पृष्ठ होते है । वेबसाइट के प्रथम पृष्ठ को होम- पेज' कहा जाता है ।

वर्ल्ड वाइड वेब के साथ मानव के वे स्वप्न भी आज साकार हो गए हैं, जिन्हें मानव सदियों से देख रहा था; जैसे - वीडियो कॉन्फ्रेंसिग, अल्प दर पर विश्वव्यापी फोन कॉल्स, आंकड़ों तक तुरंत पहुच  एवं दूर-दूर तक संवादं। इंटरनेट पर अब तीव्र एवं विश्वस्त रूप से आँकड़ों के संचरण के लिए प्रयोंग किए जाने वाले अनुप्रयोगों का उपयोग व्यापार, शिक्षा एवं मनोरंजन के क्षेत्र में हो रहा है। नेट के अधिकांश अनुप्रयोग इसी पर संचालित होते हैं। वर्ल्ड वाइड वेब को सामान्यत: वेब (Web) अथवा WWW से निरूपित किया जाता है। यह इलैक्ट्रॉनिक प्रकाशन का सर्वश्रेष्ठ साधन है। अनेक समाचार -पत्र, पत्रिकाएँ आदि इंटरनेट पर द्वारा उपलब्ध है। 

(ii) इलैक्ट्रॉनिक मेल (Electronic Mail) - 

ई-मेल व्यावसायिक जगत में संदेश सम्प्रेषण का एक आधुनिक एवं सशक्त माध्यम है। ई-मेल इंटरनेट के माध्यम से संदेश भेजने व प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है। इसमें प्रत्येक प्रयोगकर्ता का अपना ईं-मेल पता होता है और मेल आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी बहुत सरल होती है यहाँ तक कि सामान्य डाक सेवा से भी अत्यन्त सरल । यदि हमारा मेल-पता बदल भी जाता है, तब भी हम ई-मेल पता स्थायी रख सकते हैं और विश्व भर में कहीं से भी अपना मेल बॉक्स खोलकर अपनी ई- मेल को देख सकते हैँ। इंटरनेट पर ऐसे अनेक मेल-सर्वर उपलब्ध हैं, जो निःशुल्क ई-मेल पता व ई-मेल सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं।

इनमें से कुछ प्रचलित नाम हैं - 
http://www.hotmail.com,
http://www.yahoo.com,
http://www.rediffmail.com इत्यादि ।

(ii) इलैक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड (Electronic Bulletin Board) -

जिस प्रकार ईं-मेल सेवा किसी व्यक्ति अथवा समूह विशेष को संदेश भेजने व प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है उसी प्रकार नेटवर्क समाचार सेवा इलैक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड का सदस्य बनाती है, जिससे किसी भी समाचार सूचना को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है। इस प्रकार के बुलेटिन बोर्डों का प्रयोग समान विचारों के लोग आपस में सूचनाओं और समाचारों के आदान-प्रदान तथा बातचीत करने के लिए भी करते हैं। 
यूजनेट (Usenet) एक ऐसी ही लोकप्रय बुलेटिन बोर्ड हैं, जिसकी सेवा व्यापक क्षेत्र में फैली हुई हैं। इसमें लतीफों से लेकर शौकिया बातें, राजनीति, कम्प्यूटर तथा अन्य विषय भी सम्मिलित हैं।

(iv) टेलनेट (Telnet) - 

टेलनेट एक ऐसी सेवा प्रणाली है, जिसमें प्रयोगकर्ता को इंटरनेट के एक सेवा-प्रणाली से किसी अन्य सेवा-प्रणाली तक पहुचाने की क्षमता है। साथ ही इस पर उपलब्ध विभिन्न सेवाओं को प्रयोग करने का अवसर उपलब्ध कराती है।

वास्तव में टेलनेट (Telnet) एक ऐसा यूटिलिटी प्रोग्राम है, जो प्रयोगकर्ता को किसी अन्य कम्प्यूटर मशीन पर जाकर उस Host कम्प्यूटर मशीन अथवा Remote Computer पर स्थित विभिन्न सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करता है। टेलनेट की सहायता से World of Gophers, WWW पर भी काम कर सकते हैं। इतना ही नहीं टेलनेट अन्य कम्प्यूटर पर Log in करने की भी अनुमति देता है। Telnet वास्तव में एक Terminal Emulation Protocol है । इसका उपयोग करके प्रयोगकर्ता अपने अनुसंधान में सहायता व परामर्श आदि प्राप्त कर सकता है। 

(v) फाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (File Transfer Protocol) - 

फाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (File Transfer Protocol) को आम बोलचाल में FTP के नाम से जाना जाता है। इसके माध्यम से हम इंटरनेट से जुड़े किसी भी दूरी पर स्थित किसी भी व्यक्ति के पास उपलब्ध जानकारी अथवा सूचना को अपनी फाइल में ले सकते हैं, साथ ही अपनी जानकारी अथवा सूचना को उसकी फाइल को दे सकते हैं।

(vi) इंटरनेट रिले चैट (Internet Relay Chat) - 

Internet Relay Chat, जिसे आम बोलचाल में IRC के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी सेवा है, जहाँ पर हम नेट पर अनेक लोगों से मिलते हैं। यह एक ऐसा चैनल है, जहाँ पर हम कुछ भी करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। इस पर सबसे पहले एक चेतावनी संदेश प्रदर्शित होता है

Don't give any information out about yourself over irc, and do not type in anything some stranger asks you. And please, if you have children, closely monitor their activities on irc.

कुल मिलाकर IRC एक ऐसा माध्यम है जहाँ हम अपने मनचाहे विषय पर कुछ भी बात कर सकते हैं । इस प्रकार IRC Real- time Communication करने का सशक्त माध्यम है । 

(vii) वेब चैट (Web Chat) - 

वेब चैट (Web Chat) का विकास इंटरनेट राउण्डटेबिल सोसायटी (Internet Roundtable Society) के द्वारा Web पर Real-time Multimedia Chat करने के लए किया गया था। इस प्रकार के सॉफ्टवेयर World Wide Web पर हमारे ब्राउजर से जुड़कर ऑनलाइन चैटिंग (Online Chating) करने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस प्रकार की सेवा का उपयोग विभिन्न कम्पनीज अपने ग्राहकों से Online बात करने के लिए करती हैं।

(viii) न्यूज ग्रुप्स (News Groups) - 

न्यूज ग्रुप्स (News Groups) अंतर्राष्ट्रीय बुलेटिन बोर्ड की भांति होते हैं। प्रत्येक ग्रुप अलग-अलग विषयों का एक फॉर्म (Form) होता है। जहाँ पर हम अपने सवाल-जवाब रख सकते हैं। इस प्रकार हजारों ग्रुप्स एक स्थान पर एकत्र होते हैं, जिसमें सभी प्रकार की जानकारियाँ (Informations) होती हैं। इन ग्रुप्स को देखने के लिए किसी भी प्रचलित वेब ब्राउजर; जैसे - इंटरनेट एक्सप्लोरर  (IE) अथवा नेटस्केप नेव्हीगेटर (Netscape Navigator) आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इन ग्रुप्स में अनेक ऐसे ग्रुप  होते है जो बच्चों के मतलब के नहीं होते हैं। ऐसा इंटरनेट के Global होने के कारण होता है । चूंकि इस पूरी व्यवस्था में किसी का  मालिकाना हक नहीं है; अतः इस प्रकार इंटरनेट के दुरूपयोग को रोकने के लिए आजकल समितियाँ बनाईं जा रही हैं। 

(ix) फैक्स (Fax) - 

फैक्स (Fax) मशीन को टैलीकॉपिंग (Tele Copying) के नाम से भी जाता जाता है। इसका आविष्कार सन् 1988 में हुआ था। इसकी सहायता से किसी भी छपे हुए दस्तावेज (Printed Document) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर टेलीफोन लाइन के माध्यम से भेजा सकता है। फैक्स मशीन की कार्य-प्रणाली एक साधारण फोटोकॉपियर की भाँति होती है, परंतु इसमें फोटोकॉपियर से अधिक विकसित तकनीक का उपयोग किया जाता है। इसमें एक फैक्स में डॉक्यूमेंट को प्रविष्ट कराया जाता है, और दूसरी फैक्स मशोन में इसकी कॉपी प्रिंट हो जाती है। फैक्स मशीन में मूल डॉक्यूमेंट को प्रविष्ट करने पर वह स्कैन होकर इलैक्ट्रॉनिक सिग्नल्स में परिवर्तिंत हो जाता है, और टेलीफोन  लाइन के माध्यम से ये सिग्नल्स दूसरे टेलीफोन तक पहुचते हैं । वहाँ पर लगी फैक्स मशीन द्वारा इन इलैक्ट्रॉनिक सिग्नल्स को पुन: कोडेड इमेज में परिवर्तित करके प्रिंट कर दिया जाता है। 

आजकल इंटरनेट से फैक्स करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इसके लिए हमें फैक्स मशीन की आवश्यकता नहीं होती computer से फैक्स करने के लिए कम्प्यूटर में एक युक्ति मॉडम, जो कि टेलीफोन लाइन से computer को जोड़ती है, तथा एक फैक्स सॉफ्टवेयर जैसे - Super Voice, की आवश्यकता होती है। कम्प्यूटर द्वारा फैक्स भेजने के लिए डॉक्यूमेंट को कम्प्यूटर पर ही तैयार करके, बिना इसका प्रिंट निकाले ही, फैक्स सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके सीधे-सीधे भेजा सकता है ।  

(x) टेलीफोनी (Telephony) - 

टेलीफोनी (Telephony) एक ऐसी पद्धति है, जिसमें ध्वनि को इलैक्ट्रॉनिक सिग्नल्स में परिवर्तित करके फैक्स व अन्य सूचनाओं का संयुक्त रूप से दूर बैठे दो व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह प्रयोंग करते हैं। सन् 1999 में इंटरनेट टेलीफोनी सबसे ज्यादा प्रचलन में आया क्योंकि इन दिनों अमेरिका की दूरसंचार के क्षेत्र में कार्य करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने प्रयोक्ताओं को कम-से-कम रेट पर लंबी दूरी के फोन की सुविधा प्रदान की थी। औसतन यह तकनीक अपेक्षाकृत तीव्र न होते हुए भी सस्ती अवश्य है। इस प्रकार के इंटरनेट के माध्यम से फोन करने के विभिन्न तरीके उपलब्ध हैं इनमें से कुछ कम्प्यूटर से कम्प्यूटर व कुछ सीधे-सीधे फोन से बात करने की सुविधा प्रदान करते हैं । कम्प्यूटर से कम्प्यूटर पर फोन करने के लिये दोनों को किसी भी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर का कनेक्शन होना आवश्यक होता है। ऐसा करने के लिए कम्प्यूटर के साथ जुड़े हुए कुछ अन्य उपकरणों; जैसे - माइक्रोफोन और स्पीकर अथवा हैडफोन की भी आवश्यकता होती है। इस प्रकार की सेवा प्रदान करने वाले एक ISP का नाम है - विजिटॉक डॉटकॉम

(xi) कोलेबोरेटिव मल्टीमीडिया कम्प्यूटिंग (Collaborative Multimedia Computing) -

कोलेबोरेटिव मल्टीमीडिया कम्प्यूटिंग (Collaborative Multimedia Computing) नेटवर्क पर एक साथ एक Document अथवा Project पर अनेक प्रयोगकर्ता को कार्य करने की अनुमति प्रदान करता है। आजकल बनने वाले नए सॉफ्टवेयर्स में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है। इंटरनेट के लिए बनाए गए Collaborative एप्लीकेशन्स के सबसे अच्छे उदाहरण माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित नेटमीटिंग (Netmeeting) तथा नेट शो (Net Show) हैं।

(xii) नेट-शो  (Net Show) - 

नेट-शो, वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के समान ही Low-Band Width कॉन्फ्रेसिंग सेवा है। इसके माध्यम से लाइव मल्टी- कास्ट ऑडियो, फाइल ट्रांसफर और ऑन-डिमांड streemed audio.

सॉप्टवेयर डवलेपर्स के लिये Add-on-Product से संबंधित कार्य अथवा वेबसाइट डिजाइन करने के लिए विकसित वातावरण उपलब्ध कराता है। माइक्रोसॉफ्ट के अनुसार नेट-शो, इंटरनेट पर एक ऐसी सेवा है, जिसके माध्यम से इंटरनेट ट्रैैफक को कम करके उसे नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है, क्यंकि इसमें प्रयोग होने वाली नेटवर्कं कम्युनिकेशन तकनीक ट्रैफिक को कम करती है और इसमें प्रयोग होने वाले टूल्स मल्टीयूजर Collaborating तकनीक पर कार्य करने वाले होते हैं।| नेट-शो स्ट्रीमिंग तकनीक का भी प्रयोग करता है, जिसमें प्रयोगकर्ता सूचना के पूरी तरह ट्रांसफर होने  की प्रतीक्षा न करके, सूचना के पहुंचने पर उसे देख व सुन सकता है।

प्रोटोकॉल 
Protocols


प्रोटोकॉल्स नियमों का ऐसा समूह होता है, जो कम्युनिकेशन प्रक्रिया के लिये आवश्यक होता है प्रोटोकॉल्स सामान्यत: ऐसे प्रोग्राम्स हैं जो किसी नेटवर्किंग कार्य के क्रियान्वयन की सुविधा प्रदान करते हैं। प्रत्येक विशेष कार्य के लिए किसी विशेष प्रोटोकाल या प्रोटोकॉल्स के समूह की आवश्यकता होती है, और संपूर्ण नेटवर्किंग प्रकिया को पूरा करने के लिये प्रोटोकॉल्स के समूह की आवश्यकता होती है, जिसे प्रोटोकॉल सूट या स्टेक कहते हैं।

यहाँ कुछ मुख्य प्रोटोकॉल्स को समझाया जा रहा है - 

(i) हाइपर टैक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल (HTTP) - यह एक स्टेण्डर्ड इंटरनेट प्रोटोकॉल है। यह वेब ब्राउजर जैसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर और वेब सर्वर जेसे माइक्रोसाफ्ट इंटरनेट इन्फॉर्मेशन सर्विसेस (IIS) के बीच क्लाईंट सर्वर इंटरेक्शन प्रोसेस ( आदान-प्रदान की प्रक्रिया) को स्पेसिफाय (वर्णित) करता है ।  
वास्तविक हाइपरटैक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल 1.0 एक स्टेटलेस ( अवस्था रहित) प्रोटोकॉल है, जिसके द्वारा वेब ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन (जुुड़ता) करता है व उपयुक्त फाइल को डाउनलोड करता है, और फिर कनेक्शन खत्म करता है। ब्राउजर सामान्यतया एक फाइल के उपयोग के लिए HTTP से रिक्वेस्ट करता है । GET मेथड TCP पोर्ट 80 पर रिक्वेस्ट करती है, जिसमें HTTP रिक्वेस्ट हेडर की सीरीज होती है, जो ट्रांजेक्शन मेथड (GET, POST, HEAD इत्यादि) को परिभाषित करती है और साथ ही क्लाइंट को सर्वर की क्षमता बताती है। सर्वर HTTP रिस्पोंस हेडर की सीरीज को रिस्पान्स देता है, जो दर्शांता है कि ट्राजेक्शन सफल रहा है कि नहीं, किस प्रकार डेटा भेजा गया है, सर्वर का प्रकार और जो डेटा मांगा गया था, इत्यादि IIS 4 प्रोटोकॉल के उस नए Version को सपोर्ट करता है, जिसे HTTP 1.1 कहा गया । नए गुणों के कारण यह ज्यादा सक्षम है। 

(ii) फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (FTP) - फाइल ट्रांसफर करने की सुविधा जिस तकनीक के द्वारा प्रदान की जाती है, उसे फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (FTP) कहते हैं। यह एक रिकॉर्ड ओरिएन्टेड ( एक समय में एक रिकॉर्ड), ब्लॉक ट्रांसफर (जो फाइल समूह पर प्रक्रिया करता है) व इमेज ट्रांसफर (जो फाइल कंटेंट पर ध्यान नहीं देता है) की सुविधा देता है ।
FTP, EBCDIC और ASCII  (साथ ही NVT-ASCII) को जानता है तथा इनमें कुछ बुनियादी कन्वर्सन ( परिवर्तन) की सुविधा फाइल ट्रांसफर शुरू करने से पहले प्रदान करता है । यदि फाइल सिस्टम बहुत अधिक जटिल है और सिस्टम के बीच फाइल ट्रंसफर भी करना है तब FTP कुछ विशेष परिस्थिति में ऐसे क्रियान्वयन करता है जो यह बताते हैं कि कुछ विशेष प्रकार के मशीन आर्किटेक्चर के लिये कैसे किसी विशेष फाइल फार्मेट में परिवर्तन किया जाये। यह कन्वर्सन की सुविधा FTP के परिभाषित क्षेत्र में महीं है, किन्तु कुछ vendors फिर भी इस कन्वर्सन फीचर को शामिल करते हैं। फाइल transfer शुरू करने के लिए यूजर होस्ट व FTP यूटिलिटी को बुलाता हैं। फाइल नेम, टाईप (यादि आवश्यक हो तो) को प्रदर्शित करता है व रिमोट डेस्टिनेशन  इत्यादि बताता है । कुछ FTP implementation पर एक रोचक तथ्य उसकी रिकवरी सुविधा है। सभी जानते हैं कि नेटवर्क समय-समय पर फेल हो जाता है। फेल होने की स्थिति में यदि कोई ट्रांसफर हो रहा हो तो उसे पुन: शुरू करना होगा। यदि फाइल ब्लॉक मोड़ में ट्रांसफर हो रही है तो यह संभव है कि ट्रांसफर को बनाये रखे जिससे बाद के समय में यह बताया जा सके कि आखिरी ट्रांसमिटेड ब्लॉक कौन-सा था। यह फीचर सभी FTP इम्प्लीमेनटेशन पर उपलब्ध नहीं होता है। इसमें कुछ होस्ट और रिमोट सिस्टम सॉपटवेयर इसे शामिल करते हैं किन्तु उस समय में यह एक उपयोगी फीचर हैं, जब बहुत बड़ी फाइलों की ट्रांसफरिंग की जा रही हो।  

(iii) सिम्पल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (SMTP) - यह एक स्टैंडर्ड एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जो TCP/IP internetwork जैसे इंटरनेट पर ई-मेल का स्थानांतरण करता हैं। सिम्पल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (SMTP) को रिक्वेस्ट फॉर कमेंट (RFC) 821 और 822 के लिए परिभाषित किया है। 
SMTP एक मैकेनिज्म प्रदान करता हे, जिसकी मदद से एक यूजर निर्धारित एड्रेस (या एड्रेसेस जब एक से अधिक रिमोट यूजर हो) प्रदर्शित कर सकता है, एक विशिष्ट पाथ (यदि जरूरी हो तो) या एक मैसेज को प्रदर्शित कर सकता है। अन्य इलैक्ट्रॉनिक मेल सिस्टम्स की तरह SMTP भी भेजे मेल की return receipt और अन्य समान गुण प्रदान करता है। सिर्फ यदि कोई पुरानी बात है तो वह टर्म "सिम्पल" जिससे प्रॉब्लम हो सकती है। इधर कुछ सालों से यह बहुत बढ़िया उपयोगिता दर्शा रहा है। जिससे यह नाम कोई नई बात नहीं है और ना ही इससे कोई आश्चर्य होना चाहिए। यह एक बहुत उपयोगी प्रोग्राम है जिसका उपयोग रक्षा विभाग में भी हो रहा है।
SMTP प्रोटोकॉल बनाते समय, कुछ manufacturer मेल रिले या मेल स्टोर सुविधा प्रदान करते हैं। ऐसे मेल को प्राप्त कर स्टोर करते हैं, जो वर्कस्टेशन यूजर की अनुपस्थिति में प्राप्त होते हैं। यह तब तक स्टोर रहते हैं जब तक SMTP क्लाइंट उनके वर्कस्टेशन पर उसे एक्सेस न कर लें। एक वर्कस्टेशन SMTP मेल बनाने का संतोषजनक माध्यम हो सकता है, किन्तु यह एक कमजोर और उपेक्षापूर्ण प्राप्तकर्ता है

इंटरफेस की अवधारणा
Interface Concepts


इंटरफेस से अभिप्राय यह है कि जब प्रयोगकर्ता इंटरनेट से जुड़ जाता है अर्थात् Connect हो जाता है तब इंटरनेट सर्वर तथा उस प्रयोगकर्ता के कम्यूटर का एक लिंक अर्थात् परस्पर संबंध स्थापित हो जाता है, संबंध स्थापित होने के बाद प्रयोक्ता को इंटरनेट से संबंधित कार्य करने के लिए एक प्रारूप प्रदान किया जाता है। यह प्रारूप ही इंटरफेस (Interface) कहलाता है। 
इंटरफेस (Interface) अर्थात् एक ऐसी, स्क्रीन जिस पर आवश्यकतानुसार वांछित विकल्पों को इंटरनेट संबंधी कार्य सम्पन्न किया जा सके । विश्व भर में प्रयोग किए जाने वाले मुख्य नेटवर्क इंटरफेसेस ( Network Interfaces) निम्नलिखत है - 

(i) IPX - IPX का पूरा नाम Internetwork Packed Exchange है। जो एक प्रोटोकॉल की भांति कार्य करता है। यह प्रोटोकॉल Novell Netware वातावरण के लिये प्रयोग किया जाता है। इस प्रोटोकॉल को बनाने का श्रेय xerox Corporation जिसे XNS - Xerox Network Standard के नाम से जाना जाता है, को जाता है । IPX प्रोटोकॉल OSI मॉडल की नेटवर्क लेयर (Newwork Layer) के समान ही कार्य करता है तथा इसकी कार्य करने की गति SPX से तीव्र है IPX प्रोटोकॉल का कार्य लक्ष्य को संबोधित करना, एवं डाटा Packets को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का होता है।  
(ii) SPX - SPX का पूरा नाम Sequenced Packed Exchanged है, जो कि एक Session Level, Connection Oriented प्रोटोकॉल की भांति कार्य करता है। SPX प्रोटोकोल Data Packets को लक्ष्य तक पहुंचाने के मार्ग को सुनिश्चित करता हैं साथ ही पूरी प्रक्रिया को सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी भी इसी की होती है। Novelt Netware में IPX प्रोटोकॉल पहले से जुड़ा होता हैं, परंतु SPX प्रोटोकॉल Novelt Netware के नये संस्करणों में ही समाहित किया गया है।

(iii) TCP/IP - कम्प्यूटर के इंटरनेट से जुड़ने के उपरांत वे आपस में विभिन्न सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। ऐसा करने के लिए भी प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है। इंटरनेट पर इस कार्य को करने के लिए दो प्रोटोकॉल Transmission Control Protocol (TCP) और Internet Protocol (IP) मुख्य रूप से प्रयोग किये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त एक अन्य प्रोटोकॉल FTP का भी प्रयोग होता है। यह प्रोटोकॉल इंटरनेट प्रयोगकर्ता की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसका पूरा नाम File Transfer Protocol है । TCP प्रोटोकॉल का प्रयोग एप्लीकेशन डेटा को छोटे-छोटे TCP पैकेट्स में तोड़ने के लिए करते हैं।
ये प्रोटोकॉल सूचना एवं डेटा को छोटे-छोटे पैकेट्स में विभाजित कर देता है। इनमें से प्रत्येक पैकेट का एक Header होता है जिसमें Host कम्प्यूटर का पता एवं सूचना होती है | Host कम्प्यूटर अर्थात् लक्ष्य जहां पर सूचना को भेजा जाना है। IP इन छोटे- छोटे TCP पैकेट्स को अपने तरीके और अधिक छोटे-छोटे पैकेट्स में तोड़ देता है। इन पैकेट्स का भी एक IP-Header होता है, जिसमें Host का पता, TCP सूचना एवं अन्य सूचना होती है । इस प्रकार ये दोनों TCP/TP प्रोटोकॉल मिलकर सूचनाओं को इधर से उधर तथा उधर से इधर पहुंचाने का कार्य करते हैं।  

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